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Blog / 21 Jun 2020

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) नेचर इंडेक्स 2020 (Nature Index 2020)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) नेचर इंडेक्स 2020 (Nature Index 2020)



हाल ही में, भारत के शीर्ष 30 संस्थानों को 'नेचर इंडेक्स-2020' में शामिल किया गया. साथ ही, इस इंडेक्स में भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग यानी DST के तीन स्वायत्त संस्थानों को भी शामिल किया गया है.

डीएनएस (DNS) में आज हम आपको 'नेचर इंडेक्स' के बारे में बताएंगे और साथ ही समझेंगे इससे जुड़े कुछ दूसरे पहलुओं को भी……

'नेचर इंडेक्स' एक खास किस्म का डेटाबेस होता है जिसे 82 उच्च गुणवत्ता वाली विज्ञान पत्रिकाओं में प्रकाशित शोध लेखों के आधार पर तैयार किया जाता है. इस इंडेक्स में तमाम संस्थाओं की वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय रैंकिंग जारी की जाती है. इस डेटाबेस को तैयार करने का काम 'नेचर रिसर्च' नाम के एक विज्ञान जर्नल द्वारा किया जाता है. बता दें कि 'नेचर रिसर्च' अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक प्रकाशन कंपनी 'स्प्रिंगर नेचर' का ही एक सेक्शन है.

'नेचर इंडेक्स-2020' में जिन भारतीय संस्थानों को लिया गया है उनमें कई विश्वविद्यालय, IITs और भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान समेत कई दूसरे अनुसंधान संस्थान और प्रयोगशाला शामिल हैं. इसके अलावा, इस इंडेक्स में DST के जिन तीन स्वायत्त संस्थानों को लिया गया है उनमें इंडियन एसोसिएशन फॉर दि कल्टीवेशन आफ साइंस, जवाहरलाल नेहरु उन्नत वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्र और एस.एन. बोस नेशनल सेंटर फॉर बेसिक साइंसेज शामिल हैं. इन तीनों संस्थानों का स्थान क्रमशः 7वां 14वां और 30वां है. वैश्विक नजरिए से देखें तो वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद यानी CSIR 160वें स्थान और भारतीय विज्ञान संस्थान यानी IISc 184वें स्थान के साथ शीर्ष 500 संस्थानों में शामिल हैं.

'नेचर इंडेक्स' तैयार करते वक्त इसमें कई पहलुओं का ख्याल रखा जाता है मसलन कोई संस्था उच्च गुणवत्ता वाले वैज्ञानिक शोध कार्य कर रही है या नहीं; उस संस्था का दूसरे वैश्विक वैज्ञानिक शोधों में किस तरह का सहयोग है; और दूसरे संस्थाओं के साथ वह संस्था किस तरह का सहयोग कर रही है.

यदि हम भारत में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता पर नजर डालें तो पिछले काफी लंबे वक्त से शोध कार्यों को लेकर कुछ खास प्रगति नहीं हुई है. शोध शिक्षा जस की तस बनी हुई है. न तो अध्ययन सामग्री की गुणवत्ता सुधारने के लिए खास प्रयास किए गए और ना ही इस तरह के कोई कदम उठाए गए कि छात्रों की उन अध्ययन सामग्री तक पहुंच सुनिश्चित हो.

साल 2015 में, हिंदुस्तान के लगभग 1.3 अरब आबादी में से प्रति 10 लाख जनसंख्या पर केवल 216 शोधकर्ता थे. हमारे देश के कुल जीडीपी का लगभग 0.62 फ़ीसदी हिस्सा ही शोध के लिए खर्च किया जाता है. वहीँ चीन में उनके कुल जीडीपी का 2.11 फ़ीसदी हिस्सा शोध कार्यों में खर्च किया जाता है. इतना ही नहीं, चीन में प्रति 10 लाख आबादी पर तकरीबन 1200 शोधकर्ता मौजूद हैं. साल 2018 में, पीएचडी कार्यक्रमों में कुल 1,61,412 छात्र नामांकित थे. यह तादाद देश में उच्च शिक्षा में कुल छात्र नामांकन के 0.5 फ़ीसदी हिस्से से भी कम है।

अनुसंधान के क्षेत्र में सुधार एवं प्रगति के लिए भारत सरकार ने कई कदम उठाए हैं. साल 2013 में, केंद्र सरकार द्वारा 'राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान' शुरू किया था. इस अभियान का मकसद शोधकर्ताओं की संख्या को बढ़ावा देना था. विश्वविद्यालयों एवं संस्थानों में शोध कार्यो को लेकर प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के मकसद से साल 2015 में 'राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क' यानी NIRF कार्यक्रम की शुरुआत की गई. इस कार्यक्रम के तहत तमाम मानकों के आधार पर विश्वविद्यालयों और संस्थानों की रैंकिंग तय की जाती है। इसके अलावा, देश में अंतरराष्ट्रीय स्तर के विश्वविद्यालय बनाने के मकसद से केंद्र सरकार ने 'इंस्टीट्यूट आफ एमेनेंस' योजना के तहत 20 संस्थानों का समर्थन करने का भी फैसला लिया है। साल 2018 के सालाना बजट में 16.5 अरब रुपए के प्रारंभिक बजट के साथ प्रधानमंत्री अनुसंधान फेलोशिप योजना का ऐलान किया गया था।

इन तमाम उपायों के बावजूद विशेषज्ञों का मानना है कि इस दिशा में और भी प्रयास करने की जरूरत है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि शोध कार्यों को बढ़ावा देने के लिए उनके कार्यक्रमों में विविधता बढ़ाने की जरूरत है ताकि छात्रों के सामने ढेर सारे विकल्प मौजूद हों। विश्वविद्यालयों समेत दूसरे बड़े संस्थानों में शोध कार्यक्रमों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए और साथ ही शोध प्रकाशन को भी बढ़ावा मिलना चाहिए. शोध कार्यों को बढ़ावा देने के लिए छात्रों को उनके स्नातक से पहले ही उन्हें प्रेरित करने की जरूरत है। इससे छात्रों में सीखने की उत्सुकता, समस्या ढूंढने की क्षमता और उनके सोच को एक विस्तार मिलेगा।